जय श्री हरि विष्णु, जय माता तुलसी 🌺
प्रिय भक्तजनों, क्या आपने कभी सोचा है — एक छोटा-सा हरा पौधा, जो हमारे घर के आँगन में खड़ा रहता है, वह कैसे बन गया भगवान विष्णु की सबसे प्रिय?
कैसे एक साधारण सी बेल ने “देवी” का रूप लेकर स्वयं भगवान श्रीहरि के साथ विवाह किया?
और क्यों कहा जाता है कि “जहाँ तुलसी वास करती हैं, वहाँ लक्ष्मी और विष्णु का निवास होता है”?
मित्रों, यह कोई साधारण कथा नहीं — यह उस पौधे की कहानी है जो हमारे हर कष्ट, हर दुःख, और हर संकट को सोख लेता है।
यह उस माँ की महिमा है, जो हमें विष्णु जी तक पहुँचाने का सेतु बनती है।
कार्तिक मास का यह पावन समय तुलसी माता की आराधना का स्वर्ण काल है।
इस मास में तुलसी जी की एक-एक पत्ती, एक-एक दल, एक-एक जल अर्पण भी हजारों यज्ञों के समान फल देता है।
आपने देखा होगा — जब कार्तिक मास आता है, तो हर घर के द्वार पर तुलसी जी के पास दीपक जलते हैं, उनके चारों ओर परिक्रमा होती है, और हर भक्त उनके चरणों में प्रणाम करता है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि क्यों इस मास में तुलसी को नहीं छूना चाहिए?
क्यों रविवार और एकादशी को तुलसी माता को जल नहीं चढ़ाया जाता?
क्यों कहा गया है कि तुलसी बिना भगवान विष्णु की पूजा अधूरी रहती है?
और सबसे बड़ा रहस्य —
तुलसी का विवाह क्यों किया जाता है?
कौन थीं तुलसी माता पहले जन्म में?
कैसे उन्होंने भगवान विष्णु से यह वर माँगा कि वे सदा उनके हृदय में निवास करें?
प्रिय भक्तों, आज की इस दिव्य कथा में हम तुलसी माता की उसी अलौकिक महिमा को समझेंगे।
जानेंगे कि कार्तिक मास में तुलसी जी की पूजा कैसे करनी चाहिए, कौन से मंत्र से उन्हें प्रसन्न किया जा सकता है, और किन गलतियों से हमें बचना चाहिए।
यह कथा केवल पूजा विधि नहीं, बल्कि भक्ति की वह अनुभूति है जो जीवन में शांति, समृद्धि और सुख का मार्ग दिखाती है।
तो चलिए — दीपक प्रज्वलित करें, मन को शांत करें, और सुनें तुलसी माता की वह कथा जो स्वयं भगवान विष्णु के हृदय में विराजमान है।
🌿 जय श्री हरि विष्णु, जय तुलसी माता 🌿
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कार्तिक मास हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष का सबसे पवित्र महीना माना गया है। यह अश्विन पूर्णिमा के अगले दिन से प्रारंभ होकर कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है।
इस महीने को स्वयं भगवान विष्णु का मास कहा गया है।
क्योंकि इस दौरान भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं और पुनः संसार में धर्म का संचालन करते हैं।
कहा गया है —
“कार्तिकं तु महापुण्यं सर्वपापप्रणाशनम्।”
अर्थात् — कार्तिक मास वह महीना है जो सारे पापों का नाश करता है।
इस महीने का हर एक दिन एक यज्ञ के समान पुण्यदायी है।
लेकिन यदि कोई तुलसी माता की पूजा करता है, तो उसका फल सैकड़ों यज्ञों से भी अधिक मिलता है।
पुराणों के अनुसार तुलसी माता का पूर्व जन्म वृंदा नाम की एक अप्सरा के रूप में हुआ था।
वह अत्यंत रूपवती, पवित्र और भगवान विष्णु की महान भक्त थीं।
वृंदा का विवाह दैत्यराज जालंधर से हुआ था, जो अत्यंत वीर और शक्तिशाली था।
वृंदा के पतिव्रत के प्रभाव से देवता तक जालंधर को परास्त नहीं कर पाते थे।
भगवान शिव और देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे जालंधर का अंत करें।
विष्णु जी ने एक रूप धारण किया और वृंदा के सामने जालंधर के समान रूप लेकर आए।
वृंदा ने जब उनका स्पर्श किया, तो उसका पतिव्रत भंग हो गया।
उसी क्षण जालंधर की मृत्यु हो गई।
वृंदा को जब यह ज्ञात हुआ कि उनके साथ छल हुआ है, तो उन्होंने विष्णु जी को शाप दिया —
“हे विष्णु! तुमने मेरा पतिव्रत भंग किया है, अतः तुम्हें भी एक बार स्त्री के वियोग का दुःख सहना होगा।”
वृंदा ने अपने शरीर का त्याग किया, और उनके शरीर से तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ।
भगवान विष्णु ने उनके तप, प्रेम और भक्ति से प्रसन्न होकर कहा —
“हे वृंदा, तुम अब से तुलसी के रूप में पृथ्वी पर पूजित होगी।
तुम्हारे बिना मेरी पूजा अधूरी मानी जाएगी।”
इस प्रकार वृंदा देवी “तुलसी माता” बनकर धरती पर अवतरित हुईं।
तुलसी माता केवल एक पौधा नहीं हैं —
वह भक्ति का प्रतीक, पवित्रता का स्वरूप, और श्री हरि विष्णु की अर्धांगिनी हैं।
तुलसी की प्रत्येक पत्ती में भगवान विष्णु का वास माना गया है।
जब तुलसी दल को श्रीहरि पर चढ़ाया जाता है, तो वह सीधा बैकुंठ तक पहुंचता है।
पद्म पुराण में कहा गया है —
“तुलसी दलमात्रेण जलस्य चुलुकेंन वा।
विक्रयेत पापनिर्मुक्तो विष्णुलोकं स गच्छति॥”
अर्थात — जो व्यक्ति तुलसी दल और जल से विष्णु जी की पूजा करता है, वह पापमुक्त होकर विष्णु लोक को प्राप्त करता है।
कार्तिक मास में तुलसी जी की पूजा का महत्व इसलिए अधिक है क्योंकि यह वह समय है जब देवी तुलसी कुमारिका अवस्था में होती हैं।
इस पूरे महीने तुलसी माता को शुद्धता और पवित्रता के प्रतीक रूप में पूजा जाता है।
महत्वपूर्ण नियम:
- तुलसी माता को इस दौरान प्रत्यक्ष स्पर्श नहीं करना चाहिए।
- केवल जल अर्पण, दीपक, धूप और भजन के माध्यम से पूजा करनी चाहिए।
- रविवार और एकादशी को तुलसी जी को जल नहीं चढ़ाया जाता।
- तुलसी जी को सिंदूर केवल देवउठनी एकादशी (तुलसी विवाह) के दिन ही अर्पित किया जाता है।
तुलसी पूजन कैसे करें
- ब्रह्म मुहूर्त में उठें।
स्नान आदि से निवृत्त होकर तुलसी माता के समक्ष दीपक और जल की व्यवस्था करें। - सामग्री तैयार करें:
- एक लोटा शुद्ध जल
- तिल का तेल या घी का दीपक
- धूप बत्ती
- चंदन या हल्दी
- पुष्प
- प्रसाद (शक्कर, इलायची, फल या मिठाई)
- संकल्प लें:
हाथ में जल लेकर कहें —“हे तुलसी माता, मैं कार्तिक मास में आपकी सेवा और आराधना का संकल्प लेता/लेती हूँ।
कृपया मेरे घर में सुख, शांति और समृद्धि का वास करें।” - मंत्र उच्चारण करते हुए जल चढ़ाएँ:“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः”
या
“महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी।
आदि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोऽस्तुते॥” - दीपक प्रज्वलित करें और तुलसी माता की 5 या 7 परिक्रमा करें।
- भजन या मंत्र जाप:
- “ओम तुलसी च विद्महे विष्णु प्रियाच धीमहि तन्नो वृंदा प्रचोदयात।”
- “मेरे अंगना में तुलसी खड़ी, कन्हैया जी को प्यारी लगी।”
- भोग अर्पित करें और परिवार सहित प्रसाद ग्रहण करें।
- अंत में प्रार्थना करें:“हे तुलसी माता, हमारे घर से क्लेश, रोग, और दुःखों को दूर करें।
श्री हरि विष्णु के चरणों में हमारी भक्ति स्थिर करें।”
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