“क्या आपने कभी किसी साँप को खुद-ब-खुद मरते हुए देखा है?”
“न गाड़ी से कुचला गया हो, न किसी ने मारा हो, फिर भी वो शांत एक कोने में पड़ा हो, बिना खाए-पिए… मौत का इंतज़ार करता हुआ…”
“सिर्फ साँप ही नहीं, हाथी, कुत्ता, मछली और चींटी तक को पता चल जाता है कि अब उनका अंत पास है…”
“पर हम इंसान…? जो खुद को सबसे समझदार मानते हैं, क्या हमें ये संकेत महसूस होते हैं?”
“क्या आपने कभी सोचा है कि अगर कल आपकी मौत होने वाली हो… तो क्या आप उसे शांति से स्वीकार कर पाएंगे?”
“देखिए, जब मौत पास आती है – तब साँप क्या करता है… और क्यों हम इंसान, उसके सामने भी इतने असहाय हो जाते हैं

जब एक सांप की कुदरती रूप से मौत अगले 5 या 10 दिनों में आने वाली होती है तब सांप कुछ ऐसी हरकत करता है
जिसे सुनने के बाद आप भी दंग रह जाएंगे आइए जानते हैं कि जब सांप की मौत आती है तब वह क्या-क्या करता है दुनिया में 3900 से भी ज्यादा सांपों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
इनमें से करीब 200 प्रजातियाँ ऐसी हैं जिनके काटने से इंसान की जान जाना लगभग तय होता है। लेकिन आपने शायद कभी सांप को प्राकृतिक रूप से मरते हुए नहीं देखा होगा।
हमने अक्सर देखा है कि सांप या तो किसी वाहन से कुचल कर मरता है या इंसानों द्वारा मारा जाता है। पर जब उसकी मौत कुदरती रूप से आती है, तो वह एक अलौकिक और रहस्यमयी प्रक्रिया से गुजरता है।
जब किसी साँप की मृत्यु निकट होती है, तो वह पहले ही यह भांप लेता है। उसे एक अंतर्ज्ञान होता है कि अब उसका समय आ गया है। ऐसे में वह खुद को शोर-शराबे से, भीड़-भाड़ से, जंगलों से या इंसानी क्षेत्रों से दूर किसी एकांत और शांत जगह पर चला जाता है।
वह वहाँ कई दिनों तक बिना कुछ खाए-पिए पड़ा रहता है। शिकार उसकी आँखों के सामने होता है, पर अब भूख खत्म हो चुकी होती है। उसकी शिकारी प्रवृत्ति जैसे थम सी जाती है।
अब वह सिर्फ एक ही चीज करता है — प्रतीक्षा।
अपने अंत की प्रतीक्षा… शांति से… मौन रहकर… बिना किसी प्रतिरोध के…
धीरे-धीरे उसकी ऊर्जा खत्म होने लगती है। कमजोरी उसे जकड़ लेती है। उसकी सांसें हल्की पड़ने लगती हैं। और अंततः, एक दिन वह आँखें मूंद लेता है… मृत्यु को गले लगाकर।
🧘♂️ ऋषियों जैसी मृत्यु
यह सिर्फ साँप की ही नहीं — हाथी, कुत्ता, मछली और कई अन्य प्राणियों की भी यही प्रकृति होती है। जब उनका अंत आता है, वे खुद को दुनिया से अलग कर लेते हैं।
हमारे प्राचीन ऋषि-मुनि भी ऐसा ही करते थे। उन्हें पहले ही मृत्यु का आभास हो जाता था। तब वे घर-परिवार, शिष्य, समाज — सब कुछ छोड़कर एकांतवास में चले जाते थे। और ध्यान, योग, और शांति से मृत्यु का स्वागत करते थे।
🌍 और हम इंसान…?
हम, जो खुद को “सर्वश्रेष्ठ” जीव कहते हैं — क्या हम यह कर सकते हैं?
नहीं।
क्योंकि हम प्रकृति से कट चुके हैं।
हम धन, मोह, भौतिक सुखों में इतने उलझ चुके हैं कि हमें न तो प्रकृति का कोई संकेत समझ आता है, न अपने अंत का कोई आभास।
आज अगर हमें पता चले कि हमारी मृत्यु 5 दिन बाद होने वाली है — तो हम घबरा जाएंगे। शांति नहीं, बेचैनी और डर हमें घेर लेगा।
साँप हमें एक गहरा सबक सिखाता है —
मृत्यु भी जीवन की तरह एक सत्य है।
उसे स्वीकार करने के लिए आत्मज्ञान और प्रकृति से जुड़ाव चाहिए।
हम प्रकृति से जितना जुड़ेंगे, उतना ही हम अंदर से मजबूत होंगे — और शायद तब हम भी उस शांति को पा सकेंगे… जो साँप जैसे “मौन जीव” को भी उसकी अंतिम घड़ी में मिलती है।