7 बातें हमेशा छुपाकर रखना,चाहे कोई … 7 Baate Humesha ChupakarRakho

एक दिन आचार्य चाणक्य टहलते टहलते एक नदी किनारे बैठे। पास में चंद्रगुप्त बैठा था। शांत लेकिन उलझा हुआ। चाणक्य ने पूछा क्या सोच रहे हो पुत्र? चंद्रगुप्त बोला गुरुदेव क्या हर बात दिल में रखना ठीक होता है? कभी-कभी लगता है अगर सब कुछ कह दूं तो हल्का हो जाऊंगा। आचार्य मुस्कुराए और बोले पुत्र यही सोच सबसे बड़ा धोखा है। यह संसार उन लोगों को सबसे ज्यादा तोड़ता है जो दिल साफ रखते हैं। पर जुबान ढीली जो हर बात हर भावना, हर योजना, हर दुख बिना सोचे सामने वाले को बता देते हैं।

7 Baate Humesha ChupakarRakho

याद रखो जैसे तिजोरी में धन बंद रहता है वैसे ही कुछ बातें दिल में रखना ही समझदारी होती है। तो जीवन धन्य हो जाता है। बोलना हर किसी के बस की बात होती है। लेकिन चुप रहना एक कला है और जो इस कला में माहिर हो जाए दुनिया उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। आचार्य ने गहरी सांस लेते हुए कहा आज मैं तुम्हें वह सात बातें बताऊंगा जो चाहे कोई कितना भी अपना लगे उन्हें कभी किसी से नहीं बताना चाहिए। क्योंकि अगर यह बातें बाहर आ गई तो दुनिया तुम्हें तुम्हारे ही शब्दों से हराएगी। तो चलो मैं तुम्हें बताता हूं वह सात गुप्त बातें जिन्हें अगर तुमने छुपा लिया तो जिंदगी में परेशानी दूर-दूर तक भटकती भी नजर नहीं आएगी।

पहली बात घर परिवार की समस्याएं किसी को मत बताओ। आचार्य चाणक्य ने कहा जीवन की सबसे पहली नीति यही है कि अपने घर की परेशानियां कभी भी बाहर वालों को मत बताओ। चाहे झगड़ा हो, मतभेद हो या कोई निजी तकलीफ उसे घर के बाहर जाहिर मत करो। एक बार एक शिष्य रोता हुआ आया और बोला, गुरुदेव, मेरे घर में झगड़ा हुआ। पिताजी मां पर चिल्ला रहे थे और भाई गुस्से में घर छोड़ गया। मैंने यह बात अपने दोस्तों को बता दी। चाणक्य ने गंभीर स्वर में कहा, पुत्र, जब तुम अपने घर की दरारें बाहर दिखाते हो, तो लोग उन्हें जोड़ने नहीं और अधिक फाड़ने लगते हैं।

लोग करुणा नहीं कथा चाहते हैं। फिर उन्होंने एक कहानी सुनाई। एक गांव में दो भाई रोज झगड़ते थे। एक दिन बड़े भाई ने पंचायत में छोटे भाई की बुराई कर दी। नतीजा पूरे परिवार की इज्जत गिर गई। लोग बच्चों से दूरी बनाने लगे। घर की बात बाहर निकली नहीं कि संबंधों की मर्यादा भस्म हो जाती है। विश्वास चकनाचूर होता है और लोग तुम्हारे दुख को शस्त्र बना लेते हैं। चाणक्य बोले घर का झगड़ा अगर बाहर गया तो वह घर की नींव डगमगा देता है।

संबंध यदि बाहरी दृष्टि में आए तो उनका मान मिट जाता है। इसलिए चाहे हालात कितने भी बिगड़े अपने घर की बातों को केवल अपनों तक ही सीमित रखो क्योंकि बाहर की दुनिया मरहम नहीं घाव पर लवण छिड़कती है। दूसरी बात अपनी कमाई या धन का खुलासा कभी मत करो। आचार्य चाणक्य ने गंभीर स्वर में कहा, दूसरी ओर बेहद महत्वपूर्ण नीति यह है कि अपनी आमदनी, अपनी संपत्ति या जो कुछ भी तुमने कमाया है, उसका बखान कभी किसी से मत करो। एक बार की बात है। मगध के एक राजा ने अपने दरबार में गर्व से अपने खजाने की झलक सबको दिखाई।

सोने के सिक्कों से भरे कमरे, अनमोल रत्न और ढेर सारी संपत्ति सबके सामने रख दी। कुछ ही दिनों में क्या हुआ? पड़ोसी राज्य ने हमला कर दिया और वही खजाना लूट कर ले गए। चाणक्य बोले धन जितना गुप्त हो उतना ही सुरक्षित होता है। उसकी दिखावट करना अपने आप को चोरों और जलने वालों के सामने खड़ा करना है। फिर उन्होंने शिष्यों से पूछा पुत्रों क्या तुमने कभी देखा है कि अमीर लोग अपनी सच्ची कमाई सबको बताते हैं?  नहीं। क्योंकि वे जानते हैं जहां अधिक लोग जान गए वहां जरूरतें, लोभ और संकट भी बढ़ते हैं।

अगर किसी को लग जाए कि तुम अच्छी आमदनी करते हो तो कुछ लोग मदद के बहाने पास आएंगे। कुछ तुम्हें नीचे दिखाने के अवसर खोजेंगे और कुछ तो सिर्फ इसलिए द्वेष करने लगेंगे क्योंकि तुम्हारे पास वह है जो उनके पास नहीं। चाणक्य ने स्पष्ट शब्दों में कहा धन का सबसे बड़ा रक्षक उसका छिपा होना है। अगर सबको तुम्हारे धन की जानकारी हो जाए तो लोग तुम्हारे मन की शांति भी छीन लेंगे। इसलिए याद रखो अपनी कमाई को ढंका रखो जिससे मन स्थिर और निश्चिंत रहे क्योंकि जो धन दिखाया गया वही या तो लूट का कारण बनता है या जलन का। तीसरी बात अपनी भविष्य की योजनाएं गुप्त रखो।

आचार्य चाणक्य ने तीसरी नीति बताते हुए कहा पुत्रों जब तक कोई योजना पूरी ना हो जाए उसे अपने मन के अंदर ही रहने दो। जो लोग अपने हर कदम की घोषणा पहले कर देते हैं वह अक्सर मंजिल तक  पहुंचने से पहले ही रास्ता खो देते हैं। तक्षशिला के गुरुकुल में बैठे शिष्यों को चाणक्य ने एक उदाहरण दिया। एक बार का किस्सा है। एक व्यापारी ने सोचा कि वह अपने शहर में मसालों की एक बड़ी दुकान खोलेगा। उसने अपने सभी रिश्तेदारों, दोस्तों और पड़ोसियों को पहले ही यह बात बता दी। अगले ही हफ्ते एक चालाक आदमी ने उसकी बात सुनकर उसी जगह उसी तरह की दुकान खोल दी और बाजार पर कब्जा कर लिया। जब व्यापारी पहुंचा तब तक देर हो चुकी थी। चाणक्य बोले हर विचार एक बीज होता है।

अगर उसे बोने से पहले ही सबको बता दोगे तो कोई उसे मसल देगा या तुमसे पहले फल ले जाएगा। योजना की असली शक्ति उसकी चुप्पी में होती है। उन्होंने आगे कहा ध्यान रहे तैयारी का समय दिखाने का नहीं होता। काम पूरा होने के बाद ही बोलना चाहिए।  जब तक सफर चल रहा हो तब तक चुप रहो। तुम्हारा इरादा, दिशा और अगला कदम यह सब तुम्हारे अपने होते हैं। इन्हें सबके सामने लाकर तुम बेवजह का बोझ और आलोचना अपने सिर ले लेते हो। आज की दुनिया में भी यही नीति लागू होती है। कोई नया काम शुरू करना है। कोई योजना मन में है। व्यापार शुरू करना है या नौकरी बदलनी है तब तक किसी से मत कहो जब तक वह काम पूरा ना हो जाए क्योंकि यह दुनिया ना तो योजना की रक्षा करेगी ना ही असफलता की जिम्मेदारी उठाएगी।

चौथी बात अपनी कमजोरियां किसी को मत बताओ। आचार्य चाणक्य ने गंभीर स्वर में कहा पुत्रों जिस दिन तुमने अपनी कमजोरी किसी और को बताई उसी दिन तुमने हार की पहली सीढ़ी छड़ ली। तक्षशिला के गुरुकुल में एक दिन एक शिष्य ने पूछा गुरुदेव अगर हम किसी अपने को अपनी पीड़ा डर या कमजोरी बता दें तो क्या वह हमें समझेगा नहीं। चाणक्य मुस्कुराए और बोले अपने अक्सर तब तक साथ होते हैं जब तक तुम्हारी ताकत उन्हें फायदा देती है। लेकिन जैसे ही तुम्हारी कमजोरी  सामने आती है। वही लोग या तो दूर हो जाते हैं या पीठ पीछे वार करते हैं। उन्होंने एक कहानी सुनाई। एक योद्धा था जो तीरों से डरता था। उसने अपने सबसे करीबी साथी से कहा अगर युद्ध में तीर चलने लगे तो मुझे पीछे कर देना मुझे डर लगता है। कुछ समय बाद वही साथी शत्रु से जा मिला और युद्ध में सबसे पहले तीर उसी योद्धा की ओर चलवाए क्योंकि उसे पता था कहां वार करना है और वह योद्धा बिना लड़े धराशाई हो गया।

चाणक्य बोले कमजोरी तब तक ताकत है जब तक केवल तुम्हें पता हो। जिस दिन वह किसी और को पता चल गई, वह तुम्हारे विरुद्ध सबसे तेज अस्त्र बन जाती है। उन्होंने चंद्रगुप्त की ओर देखकर कहा, राजा वही होता है जो अपने डर को तलवार में छिपा ले और चेहरे की मुस्कान में अपने घावों को भी छुपा ले। तो याद रखो मेरे दोस्त अपने डर, अपनी तकलीफें, पुराने घाव इन्हें अपने भीतर रखो। क्योंकि दुनिया में बहुत से लोग मदद नहीं करते। 

हार का तमाशा देखने के लिए खड़े रहते हैं। पांचवी बात अपने दान का बखान मत करो। आचार्य चाणक्य मुस्कुराए और बोले पुत्रों जो दान जुबान से बोला जाए वो  पुण्य नहीं अहंकार का प्रदर्शन होता है। गुरुकुल में बैठे शिष्यों ने प्रश्न किया गुरुदेव अगर हमने किसी गरीब की मदद की, किसी भूखे को भोजन दिया या किसी छात्र को शिक्षा के लिए सहायता दी तो क्या यह बताना गलत है? चाणक्य ने शांत स्वर में कहा, जब तुम दान करते हो और फिर उसी का प्रचार करते हो, तो वह मदद नहीं रह जाती।

वह तुम्हारे घमंड को बढ़ाने का तरीका बन जाती है। उन्होंने चंद्रगुप्त को संबोधित करते हुए कहा, एक बार एक राजा ने दरबार में घोषणा की। मैंने इस वर्ष 100 गाय ब्राह्मणों को दान दी है। लोगों ने तालियां बजाई। पर उसी रात सपने में उसे एक वृद्ध ब्राह्मण मिला और बोला राजन आपने जो दिया वह पुण्य नहीं बना क्योंकि आपने उसका बखान कर दिया। दान तभी फलदायक होता है जब वह छुपा हो। चाणक्य ने स्पष्ट शब्दों में कहा दाएं हाथ से दिया गया दान अगर बाएं हाथ को भी पता चल जाए तो वह भी अधिक हो जाता है। फिर उन्होंने एक सूत्र बताया। दान वह दीपक है जो अंधेरे में जलता है। उसे कोई देखे या ना देखे उसका उजाला एक दिन लौट कर आता है।

इसलिए मेरे दोस्त अगर तुमने सच में किसी की मदद की है तो उसे दुनिया को बताने की जरूरत नहीं है। जो सच्चे दिल से दिया गया है वह ऊपर तक पहुंचता है। बाकी सब बस दिखावे की बात है। छठी बात अपमान और हार की कहानियां कभी मत सुनाओ। आचार्य चाणक्य ने शिष्यों की ओर देखते हुए गहरी बात कही। पुत्रों जीवन में हर कोई कभी ना कभी हारता है। अपमान झेलता है। लेकिन उस हार को बार-बार दोहराते रहना खुद अपने जख्मों को उधेड़ने जैसा है। उन्होंने चंद्रगुप्त की ओर देखा और बोले एक योद्धा ने युद्ध में हार का सामना किया। उसने हर गांव में जाकर कहा मैं हार गया।

मुझे धोखा दिया गया। मेरे साथ अन्याय हुआ। कुछ लोगों ने सहानुभूति जताई। लेकिन अधिकतर ने उसे हंसी का विषय बना दिया और जब वह फिर मैदान में उतरा तो सब पहले से ही उसकी हार देखने का इंतजार करने लगे। चाणक्य ने कहा अगर तुमने कभी अपमान सहा है तो उसे अपनी ताकत में बदलो सीख लो पर उसे ढोल की तरह मत बजाओ। दुनिया चतुर है। वह तुम्हारे दुखों पर रोएगी नहीं बल्कि उन्हें याद रखेगी।

7 Baate Humesha Chupakar Rakho

उन्होंने एक सूत्र सुनाया। अपमान को याद मत करो। उसे अपने भीतर शक्ति में बदलो। जब तुम अपने दुख को सबके सामने लाते हो तो वे लोग जो पहले ही तुमसे जलते हैं उसी को तुम्हारे खिलाफ इस्तेमाल करते हैं। और याद रखो दुनिया तभी विश्वास करती है जब तुम अपनी ताकत दिखाते हो ना कि तब जब तुम अपने टूटने की कहानियां सुनाते हो। तो मेरे भाई अगर कभी हारो तो दुनिया से मत कहो। मैं हार गया। खुद से कहो अब और मजबूती से  खड़ा होना है। सच्चा विजेता वही होता है जो गिरकर भी बिना कुछ कहे फिर से खड़ा हो जाता है और अपनी चुप्पी से सबको चौंका देता है। सातवीं बात अपनी भावनाएं जैसे क्रोध, मोह या पीड़ा कभी किसी के सामने मत खोलो। आचार्य चाणक्य ने सभी शिष्यों की ओर देखा और गंभीर स्वर में बोले।

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मनुष्य का सबसे बड़ा रहस्य उसका मन होता है और जो हर किसी के सामने अपना मन खोल देता है वह सबसे पहले टूटता है। उन्होंने कहा जब तुम रोते हो, क्रोधित होते हो या मोह में फंसते हो और इन्हें दूसरों से साझा करते हो तो लोग सहानुभूति नहीं गणना करते हैं। वे सोचते हैं कि तुम्हारी कमजोरी कहां है और कैसे तुम्हें वहीं से तोड़ा जा सकता है। अगर तुमने किसी से कहा कि तुम किससे नाराज हो तो वह बात तुम्हारे शत्रुओं तक पहुंच सकती है। अगर तुमने किसी को बताया कि तुम किससे मोह रखते हो वही लोग उस मोह को तोड़ने की कोशिश करेंगे और अगर तुमने अपनी पीड़ा जाहिर की तो लोग उसका हल नहीं फायदा सोचेंगे।

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फिर चाणक्य ने समझाया भावनाएं भी उसी तरह होती है जैसे धन जो सबके सामने आ जाए उसका मूल्य घट जाता है। पर जो भीतर सहेज ली जाए वही ताकत बनती है।  उन्होंने चंद्रगुप्त से कहा राजा वही होता है जो भीतर आग बनकर जले लेकिन बाहर से ठंडी छाया की तरह दिखाई दे। जिसे दुनिया ना समझ सके वही सबसे मजबूत होता है। अपने मन की बात केवल उसी से कहो जो वास्तव में निस्वार्थ हो। बाकी सबके सामने बस मुस्कुराओ और मौन रहो। चंद्रगुप्त सिर झुका कर बोला गुरुदेव मैं समझ गया। हर रिश्ते में भले प्रेम हो, लेकिन कुछ बातें ऐसी होती हैं, जिन्हें गुप्त रखना ही बुद्धिमत्ता है। चाणक्य बोले, पुत्र यही नीति जीवन का सबसे बड़ा कवच है। इसे ओढ़ लो। फिर कोई तुम्हें तोड़ नहीं पाएगा। तो मेरे दोस्तों चाहे कोई कितना भी खास क्यों ना हो इन सात बातों को अपने तक ही सीमित रखो।

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