मंत्रोच्चार और अग्नि के सात फेरे लिए बिना वैध नहीं होगा आपका विवाह, सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहीं ऐसी बात?

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा है कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत वैध विवाह के लिए केवल प्रमाण पत्र ही पर्याप्त नहीं है ,बल्कि शादी समारोह  और रीति-रिवाज का पालन भी अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए, जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आंगअस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा कि अगर किसी की शादी में ऐसे आयोजन का अभाव है, तो उसे जोडे का वैवाहिक दर्जा नहीं दिया जा सकता ,यानी हिंदू विवाह तभी वैध माना जाएगा, जब समाज के सामने पूरे मंत्रोच्चार के बीच अग्नि के सामने सात पवित्र फेरे लेने जैसी प्रथा निभाई गई हो


बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक कोर्ट ने कहा हिंदू विवाह अधिनियम के तहत वैध विवाह के लिए वैवाहिक समारोह का आयोजन किया जाना चाहिए, और किसी विवाद की स्थिति में उस समारोह के सबूत को दिखाया जाना चाहिए। अधिनियम की धारा 7 के अनुसार तब तक कोई हिंदू विवाह मान्य नहीं होगा जब तक की पक्षों ने ऐसे समारोह में भाग ना लिया हो, ऐसे समारोह के बिना किसी संस्था द्वारा केवल प्रमाण पत्र जारी करने से ना तो वैवाहिक स्थिति की पुष्टि होगी, और ना ही हिंदू कानून के तहत विवाह स्थापित हो सकेगा।
संविधान के अनुच्छेद 142 {किसी मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय की पूर्ण शक्तियां} के तहत एक स्थानांतरण याचिका को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने यह टिप्पणियां की है। कोर्ट में हिंदू विवाह अधिनियम के अनुसार विवाह को वैध नहीं मानते हुए विवादित पक्षों के खिलाफ तलाक भरण पोषण और आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया ,मामले में बादी और प्रतिवादी {जोड़े} ने हिंदू रीति रिवाज के मुताबिक शादी नहीं की थी ,बल्कि उस दंपति ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 8 के तहत सिर्फ अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन ही कराया था।
उसे जोड़े ने वैदिक जन कल्याण समिति नामक एक संगठन से अपने विवाह का प्रमाण पत्र हासिल किया था, इसी प्रमाण पत्र के आधार पर दंपती ने उत्तर प्रदेश विवाह पंजीकरण नियम 2017 के तहत जो है “विवाह पंजीकरण का प्रमाण पत्र “भी हासिल कर लिया था ।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि वह हिंदू विवाह नहीं होने की स्थिति में कोई भी विवाह पंजीकरण अधिकारी हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 8 की प्रावधानों के साथ ऐसे विवाहों का पंजीकरण नहीं कर सकते। खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि अधिनियम की धारा 8 के तहत विवाह का पंजीकरण केवल इस बात की पुष्टि करने के लिए है कि पक्षकारों ने अधिनियम की धारा 7 के अनुसार वेद विवाह समारोह में भाग लिया है ।
इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने हिंदू विवाह अधिनियम के तहत आवश्यक वैध  समारोह के बिना भारतीय विवाहों के पंजीकरण की प्रवृत्ति पर सख्त आपत्ति जताई हैं। कोर्ट ने अपने विस्तृत फैसले में विवाह के महत्व पर भी गहनता से प्रकाश डाला है ।भारतीय समाज में विवाह एक संस्था के रूप में बहुत महत्व रखता है ।इसके दंपतियों को सिर्फ कागजी पंजीकरण के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए।

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